سورة لقمان بالهندية

  1. استمع للسورة
  2. سور أخرى
  3. ترجمة السورة
القرآن الكريم | ترجمة معاني القرآن | اللغة الهندية | سورة لقمان | Luqman - عدد آياتها 34 - رقم السورة في المصحف: 31 - معنى السورة بالإنجليزية: Luqman.

الم(1)

अलिफ़ लाम मीम

تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْحَكِيمِ(2)

ये सूरा हिकमत से भरी हुई किताब की आयतें है

هُدًى وَرَحْمَةً لِّلْمُحْسِنِينَ(3)

जो (अज़सरतापा) उन लोगों के लिए हिदायत व रहमत है

الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ(4)

जो पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं और ज़कात देते हैं और वही लोग आख़िरत का भी यक़ीन रखते हैं

أُولَٰئِكَ عَلَىٰ هُدًى مِّن رَّبِّهِمْ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ(5)

यही लोग अपने परवरदिगार की हिदायत पर आमिल हैं और यही लोग (क़यामत में) अपनी दिली मुरादें पाएँगे

وَمِنَ النَّاسِ مَن يَشْتَرِي لَهْوَ الْحَدِيثِ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَيَتَّخِذَهَا هُزُوًا ۚ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُّهِينٌ(6)

और लोगों में बाज़ (नज़र बिन हारिस) ऐसा है जो बेहूदा क़िस्से (कहानियाँ) ख़रीदता है ताकि बग़ैर समझे बूझे (लोगों को) ख़ुदा की (सीधी) राह से भड़का दे और आयातें ख़ुदा से मसख़रापन करे ऐसे ही लोगों के लिए बड़ा रुसवा करने वाला अज़ाब है

وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِ آيَاتُنَا وَلَّىٰ مُسْتَكْبِرًا كَأَن لَّمْ يَسْمَعْهَا كَأَنَّ فِي أُذُنَيْهِ وَقْرًا ۖ فَبَشِّرْهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ(7)

और जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो शेख़ी के मारे मुँह फेरकर (इस तरह) चल देता है गोया उसने इन आयतों को सुना ही नहीं जैसे उसके दोनो कानों में ठेठी है तो (ऐ रसूल) तुम उसको दर्दनाक अज़ाब की (अभी से) खुशख़बरी दे दे

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ جَنَّاتُ النَّعِيمِ(8)

बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे काम किए उनके लिए नेअमत के (हरे भरे बेहश्ती) बाग़ हैं कि यो उनमें हमेशा रहेंगे

خَالِدِينَ فِيهَا ۖ وَعْدَ اللَّهِ حَقًّا ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ(9)

ये ख़ुदा का पक्का वायदा है और वह तो (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है

خَلَقَ السَّمَاوَاتِ بِغَيْرِ عَمَدٍ تَرَوْنَهَا ۖ وَأَلْقَىٰ فِي الْأَرْضِ رَوَاسِيَ أَن تَمِيدَ بِكُمْ وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَابَّةٍ ۚ وَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوْجٍ كَرِيمٍ(10)

तुम उन्हें देख रहे हो कि उसी ने बग़ैर सुतून के आसमानों को बना डाला और उसी ने ज़मीन पर (भारी भारी) पहाड़ों के लंगर डाल दिए कि (मुबादा) तुम्हें लेकर किसी तरफ जुम्बिश करे और उसी ने हर तरह चल फिर करने वाले (जानवर) ज़मीन में फैलाए और हमने आसमान से पानी बरसाया और (उसके ज़रिए से) ज़मीन में हर रंग के नफ़ीस जोड़े पैदा किए

هَٰذَا خَلْقُ اللَّهِ فَأَرُونِي مَاذَا خَلَقَ الَّذِينَ مِن دُونِهِ ۚ بَلِ الظَّالِمُونَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ(11)

(ऐ रसूल उनसे कह दो कि) ये तो खुदा की ख़िलक़त है कि (भला) तुम लोग मुझे दिखाओं तो कि जो (जो माबूद) ख़ुदा के सिवा तुमने बना रखे है उन्होंने क्या पैदा किया बल्कि सरकश लोग (कुफ्फ़ार) सरीही गुमराही में (पडे) हैं

وَلَقَدْ آتَيْنَا لُقْمَانَ الْحِكْمَةَ أَنِ اشْكُرْ لِلَّهِ ۚ وَمَن يَشْكُرْ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ ۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ(12)

और यक़ीनन हम ने लुक़मान को हिकमत अता की (और हुक्म दिया था कि) तुम ख़ुदा का शुक्र करो और जो ख़ुदा का शुक्र करेगा-वह अपने ही फायदे के लिए शुक्र करता है और जिसने नाशुक्री की तो (अपना बिगाड़ा) क्योंकी ख़ुदा तो (बहरहाल) बे परवाह (और) क़ाबिल हमदो सना है

وَإِذْ قَالَ لُقْمَانُ لِابْنِهِ وَهُوَ يَعِظُهُ يَا بُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللَّهِ ۖ إِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ(13)

और (वह वक्त याद करो) जब लुक़मान ने अपने बेटे से उसकी नसीहत करते हुए कहा ऐ बेटा (ख़बरदार कभी किसी को) ख़ुदा का शरीक न बनाना (क्योंकि) शिर्क यक़ीनी बड़ा सख्त गुनाह है

وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَىٰ وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ أَنِ اشْكُرْ لِي وَلِوَالِدَيْكَ إِلَيَّ الْمَصِيرُ(14)

(जिस की बख़्शिस नहीं) और हमने इन्सान को जिसे उसकी माँ ने दुख पर दुख सह के पेट में रखा (इसके अलावा) दो बरस में (जाके) उसकी दूध बढ़ाई की (अपने और) उसके माँ बाप के बारे में ताक़ीद की कि मेरा भी शुक्रिया अदा करो और अपने वालदैन का (भी) और आख़िर सबको मेरी तरफ लौट कर जाना है

وَإِن جَاهَدَاكَ عَلَىٰ أَن تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا ۖ وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا ۖ وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ ۚ ثُمَّ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ(15)

और अगर तेरे माँ बाप तुझे इस बात पर मजबूर करें कि तू मेरा शरीक ऐसी चीज़ को क़रार दे जिसका तुझे इल्म भी नहीं तो तू (इसमें) उनकी इताअत न करो (मगर तकलीफ़ न पहुँचाना) और दुनिया (के कामों) में उनका अच्छी तरह साथ दे और उन लोगों के तरीक़े पर चल जो (हर बात में) मेरी (ही) तरफ रुजू करे फिर (तो आख़िर) तुम सबकी रुजू मेरी ही तरफ है तब (दुनिया में) जो कुछ तुम करते थे

يَا بُنَيَّ إِنَّهَا إِن تَكُ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِّنْ خَرْدَلٍ فَتَكُن فِي صَخْرَةٍ أَوْ فِي السَّمَاوَاتِ أَوْ فِي الْأَرْضِ يَأْتِ بِهَا اللَّهُ ۚ إِنَّ اللَّهَ لَطِيفٌ خَبِيرٌ(16)

(उस वक्त उसका अन्जाम) बता दूँगा ऐ बेटा इसमें शक नहीं कि वह अमल (अच्छा हो या बुरा) अगर राई के बराबर भी हो और फिर वह किसी सख्त पत्थर के अन्दर या आसमान में या ज़मीन मे (छुपा हुआ) हो तो भी ख़ुदा उसे (क़यामत के दिन) हाज़िर कर देगा बेशक ख़ुदा बड़ा बारीकबीन वाक़िफकार है

يَا بُنَيَّ أَقِمِ الصَّلَاةَ وَأْمُرْ بِالْمَعْرُوفِ وَانْهَ عَنِ الْمُنكَرِ وَاصْبِرْ عَلَىٰ مَا أَصَابَكَ ۖ إِنَّ ذَٰلِكَ مِنْ عَزْمِ الْأُمُورِ(17)

ऐ बेटा नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा कर और (लोगों से) अच्छा काम करने को कहो और बुरे काम से रोको और जो मुसीबत तुम पर पडे उस पर सब्र करो (क्योंकि) बेशक ये बड़ी हिम्मत का काम है

وَلَا تُصَعِّرْ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلَا تَمْشِ فِي الْأَرْضِ مَرَحًا ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ(18)

और लोगों के सामने (गुरुर से) अपना मुँह न फुलाना और ज़मीन पर अकड़कर न चलना क्योंकि ख़ुदा किसी अकड़ने वाले और इतराने वाले को दोस्त नहीं रखता और अपनी चाल ढाल में मियाना रवी एख्तेयार करो

وَاقْصِدْ فِي مَشْيِكَ وَاغْضُضْ مِن صَوْتِكَ ۚ إِنَّ أَنكَرَ الْأَصْوَاتِ لَصَوْتُ الْحَمِيرِ(19)

और दूसरो से बोलने में अपनी आवाज़ धीमी रखो क्योंकि आवाज़ों में तो सब से बुरी आवाज़ (चीख़ने की वजह से) गधों की है

أَلَمْ تَرَوْا أَنَّ اللَّهَ سَخَّرَ لَكُم مَّا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَأَسْبَغَ عَلَيْكُمْ نِعَمَهُ ظَاهِرَةً وَبَاطِنَةً ۗ وَمِنَ النَّاسِ مَن يُجَادِلُ فِي اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَلَا هُدًى وَلَا كِتَابٍ مُّنِيرٍ(20)

क्या तुम लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही ने यक़ीनी तुम्हारा ताबेए कर दिया है और तुम पर अपनी ज़ाहिरी और बातिनी नेअमतें पूरी कर दीं और बाज़ लोग (नुसर बिन हारिस वगैरह) ऐसे भी हैं जो (ख्वाह मा ख्वाह) ख़ुदा के बारे में झगड़ते हैं (हालॉकि उनके पास) न इल्म है और न हिदायत है और न कोई रौशन किताब है

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّبِعُوا مَا أَنزَلَ اللَّهُ قَالُوا بَلْ نَتَّبِعُ مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آبَاءَنَا ۚ أَوَلَوْ كَانَ الشَّيْطَانُ يَدْعُوهُمْ إِلَىٰ عَذَابِ السَّعِيرِ(21)

और जब उनसे कहा जाता है कि जो (किताब) ख़ुदा ने नाज़िल की है उसकी पैरवी करो तो (छूटते ही) कहते हैं कि नहीं हम तो उसी (तरीक़े से चलेंगे) जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया भला अगरचे शैतान उनके बाप दादाओं को जहन्नुम के अज़ाब की तरफ बुलाता रहा हो (तो भी उन्ही की पैरवी करेंगे)

۞ وَمَن يُسْلِمْ وَجْهَهُ إِلَى اللَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَىٰ ۗ وَإِلَى اللَّهِ عَاقِبَةُ الْأُمُورِ(22)

और जो शख्स ख़ुदा के आगे अपना सर (तस्लीम) ख़म करे और वह नेकोकार (भी) हो तो बेशक उसने (ईमान की) मज़बूत रस्सी पकड़ ली और (आख़िर तो) सब कामों का अन्जाम ख़ुदा ही की तरफ है

وَمَن كَفَرَ فَلَا يَحْزُنكَ كُفْرُهُ ۚ إِلَيْنَا مَرْجِعُهُمْ فَنُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ(23)

और (ऐ रसूल) जो काफिर बन बैठे तो तुम उसके कुफ्र से कुढ़ों नही उन सबको तो हमारी तरफ लौट कर आना है तो जो कुछ उन लोगों ने किया है (उसका नतीजा) हम बता देगें बेशक ख़ुदा दिलों के राज़ से (भी) खूब वाक़िफ है

نُمَتِّعُهُمْ قَلِيلًا ثُمَّ نَضْطَرُّهُمْ إِلَىٰ عَذَابٍ غَلِيظٍ(24)

हम उन्हें चन्द रोज़ों तक चैन करने देगें फिर उन्हें मजबूर करके सख्त अज़ाब की तरफ खीच लाएँगें

وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ ۚ قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ(25)

और (ऐ रसूल) तुम अगर उनसे पूछो कि सारे आसमान और ज़मीन को किसने पैदा किया तो ज़रुर कह देगे कि अल्लाह ने (ऐ रसूल) इस पर तुम कह दो अल्हमदोलिल्लाह मगर उनमें से अक्सर (इतना भी) नहीं जानते हैं

لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ(26)

जो कुछ सारे आसमान और ज़मीन में है (सब) ख़ुदा ही का है बेशक ख़ुदा तो (हर चीज़ से) बेपरवा (और बहरहाल) क़ाबिले हम्दो सना है

وَلَوْ أَنَّمَا فِي الْأَرْضِ مِن شَجَرَةٍ أَقْلَامٌ وَالْبَحْرُ يَمُدُّهُ مِن بَعْدِهِ سَبْعَةُ أَبْحُرٍ مَّا نَفِدَتْ كَلِمَاتُ اللَّهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ(27)

और जितने दरख्त ज़मीन में हैं सब के सब क़लम बन जाएँ और समन्दर उसकी सियाही बनें और उसके (ख़त्म होने के) बाद और सात समन्दर (सियाही हो जाएँ और ख़ुदा का इल्म और उसकी बातें लिखी जाएँ) तो भी ख़ुदा की बातें ख़त्म न होगीं बेशक ख़ुदा सब पर ग़ालिब (और) दाना (बीना) है

مَّا خَلْقُكُمْ وَلَا بَعْثُكُمْ إِلَّا كَنَفْسٍ وَاحِدَةٍ ۗ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ(28)

तुम सबका पैदा करना और फिर (मरने के बाद) जिला उठाना एक शख्स के (पैदा करने और जिला उठाने के) बराबर है बेशक ख़ुदा (तुम सब की) सुनता और सब कुछ देख रहा है

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى وَأَنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ(29)

क्या तूने ये भी ख्याल न किया कि ख़ुदा ही रात को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल कर देता है (तो रात बढ़ जाती है) और दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल कर देता है (तो दिन बढ़ जाता है) उसी ने आफताब व माहताब को (गोया) तुम्हारा ताबेए बना दिया है कि एक मुक़र्रर मीयाद तक (यूँ ही) चलता रहेगा और (क्या तूने ये भी ख्याल न किया कि) जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़ूब वाकिफकार है

ذَٰلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدْعُونَ مِن دُونِهِ الْبَاطِلُ وَأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ(30)

ये (सब बातें) इस सबब से हैं कि ख़ुदा ही यक़ीनी बरहक़ (माबूद) है और उस के सिवा जिसको लोग पुकारते हैं यक़ीनी बिल्कुल बातिल और इसमें शक नहीं कि ख़ुदा ही आलीशान और बड़ा रुतबे वाला है

أَلَمْ تَرَ أَنَّ الْفُلْكَ تَجْرِي فِي الْبَحْرِ بِنِعْمَتِ اللَّهِ لِيُرِيَكُم مِّنْ آيَاتِهِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ(31)

क्या तूने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ही के फज़ल से कश्ती दरिया में बहती चलती रहती है ताकि (लकड़ी में ये क़ूवत देकर) तुम लोगों को अपनी (कुदरत की) बाज़ निशानियाँ दिखा दे बेशक उस में भी तमाम सब्र व शुक्र करने वाले (बन्दों) के लिए (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ दिखा दे बेशक इसमें भी तमाम सब्र व शुक्र करने वाले (बन्दों) के लिए (क़ुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं

وَإِذَا غَشِيَهُم مَّوْجٌ كَالظُّلَلِ دَعَوُا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ فَلَمَّا نَجَّاهُمْ إِلَى الْبَرِّ فَمِنْهُم مُّقْتَصِدٌ ۚ وَمَا يَجْحَدُ بِآيَاتِنَا إِلَّا كُلُّ خَتَّارٍ كَفُورٍ(32)

और जब उन्हें मौज (ऊँची होकर) साएबानों की तरह (ऊपर से) ढॉक लेती है तो निरा खुरा उसी का अक़ीदा रखकर ख़ुदा को पुकारने लगते हैं फिर जब ख़ुदा उनको नजात देकर खुश्की तक पहुँचा देता है तो उनमें से बाज़ तो कुछ देर एतदाल पर रहते हैं (और बाज़ पक्के काफिर) और हमारी (क़ुदरत की) निशानियों से इन्कार तो बस बदएहद और नाशुक्रे ही लोग करते हैं

يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمْ وَاخْشَوْا يَوْمًا لَّا يَجْزِي وَالِدٌ عَن وَلَدِهِ وَلَا مَوْلُودٌ هُوَ جَازٍ عَن وَالِدِهِ شَيْئًا ۚ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ(33)

लोगों अपने परवरदिगार से डरो और उस दिन का ख़ौफ रखो जब न कोई बाप अपने बेटे के काम आएगा और न कोई बेटा अपने बाप के कुछ काम आ सकेगा ख़ुदा का (क़यामत का) वायदा बिल्कुल पक्का है तो (कहीं) तुम लोगों को दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी धोखे में न डाले और न कहीं तुम्हें फरेब देने वाला (शैतान) कुछ फ़रेब दे

إِنَّ اللَّهَ عِندَهُ عِلْمُ السَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ الْغَيْثَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْأَرْحَامِ ۖ وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ مَّاذَا تَكْسِبُ غَدًا ۖ وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ بِأَيِّ أَرْضٍ تَمُوتُ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ(34)

बेशक ख़ुदा ही के पास क़यामत (के आने) का इल्म है और वही (जब मौक़ा मुनासिब देखता है) पानी बरसाता है और जो कुछ औरतों के पेट में (नर मादा) है जानता है और कोई शख्स (इतना भी तो) नहीं जानता कि वह ख़़ुद कल क्या करेगा और कोई शख्स ये (भी) नहीं जानता है कि वह किस सर ज़मीन पर मरे (गड़े) गा बेशक ख़ुदा (सब बातों से) आगाह ख़बरदार है


المزيد من السور باللغة الهندية:

سورة البقرة آل عمران سورة النساء
سورة المائدة سورة يوسف سورة ابراهيم
سورة الحجر سورة الكهف سورة مريم
سورة السجدة سورة يس سورة الدخان
سورة النجم سورة الرحمن سورة الواقعة
سورة الحشر سورة الملك سورة الحاقة

تحميل سورة لقمان بصوت أشهر القراء :

قم باختيار القارئ للاستماع و تحميل سورة لقمان كاملة بجودة عالية
سورة لقمان أحمد العجمي
أحمد العجمي
سورة لقمان خالد الجليل
خالد الجليل
سورة لقمان سعد الغامدي
سعد الغامدي
سورة لقمان سعود الشريم
سعود الشريم
سورة لقمان عبد الباسط عبد الصمد
عبد الباسط
سورة لقمان عبد الله عواد الجهني
عبد الله الجهني
سورة لقمان علي الحذيفي
علي الحذيفي
سورة لقمان فارس عباد
فارس عباد
سورة لقمان ماهر المعيقلي
ماهر المعيقلي
سورة لقمان محمد جبريل
محمد جبريل
سورة لقمان محمد صديق المنشاوي
المنشاوي
سورة لقمان الحصري
الحصري
سورة لقمان العفاسي
مشاري العفاسي
سورة لقمان ناصر القطامي
ناصر القطامي
سورة لقمان ياسر الدوسري
ياسر الدوسري



Sunday, April 28, 2024

لا تنسنا من دعوة صالحة بظهر الغيب