Surah Al Imran Ayat 140 Tafseer in Hindi
﴿إِن يَمْسَسْكُمْ قَرْحٌ فَقَدْ مَسَّ الْقَوْمَ قَرْحٌ مِّثْلُهُ ۚ وَتِلْكَ الْأَيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيْنَ النَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَيَتَّخِذَ مِنكُمْ شُهَدَاءَ ۗ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ الظَّالِمِينَ﴾
[ آل عمران: 140]
अगर (जंगे ओहद में) तुमको ज़ख्म लगा है तो उसी तरह (बदर में) तुम्हारे फ़रीक़ (कुफ्फ़ार को) भी ज़ख्म लग चुका है (उस पर उनकी हिम्मत तो न टूटी) ये इत्तफ़ाक़ाते ज़माना हैं जो हम लोगों के दरमियान बारी बारी उलट फेर किया करते हैं और ये (इत्तफ़ाक़ी शिकस्त इसलिए थी) ताकि ख़ुदा सच्चे ईमानदारों को (ज़ाहिरी) मुसलमानों से अलग देख लें और तुममें से बाज़ को दरजाए शहादत पर फ़ायज़ करें और ख़ुदा (हुक्मे रसूल से) सरताबी करने वालों को दोस्त नहीं रखता
Surah Al Imran Hindi75. इसमें क़ुरैश की बद्र में पराजय और उनके 70 व्यक्तियों के मारे जाने की ओर संकेत है। 76. अर्थात कभी किसी की जीत होती है, कभी किसी की। 77. अर्थात अच्छे बुरे में अंतर कर दे।
Surah Al Imran Verse 140 translate in arabic
إن يمسسكم قرح فقد مس القوم قرح مثله وتلك الأيام نداولها بين الناس وليعلم الله الذين آمنوا ويتخذ منكم شهداء والله لا يحب الظالمين
سورة: آل عمران - آية: ( 140 ) - جزء: ( 4 ) - صفحة: ( 67 )Surah Al Imran Ayat 140 meaning in Hindi
यदि तुम्हें आघात पहुँचे तो उन लोगों को भी ऐसा ही आघात पहुँच चुका है। ये युद्ध के दिन हैं, जिन्हें हम लोगों के बीच डालते ही रहते है और ऐसा इसलिए हुआ कि अल्लाह ईमानवालों को जान ले और तुममें से कुछ लोगों को गवाह बनाए - और अत्याचारी अल्लाह को प्रिय नहीं है
Quran Urdu translation
اگر تمہیں زخم (شکست) لگا ہے تو ان لوگوں کو بھی ایسا زخم لگ چکا ہے اور یہ دن ہیں کہ ہم ان کو لوگوں میں بدلتے رہتے ہیں اور اس سے یہ بھی مقصود تھا کہ خدا ایمان والوں کو متمیز کر دے اور تم میں سے گواہ بنائے اور خدا بےانصافوں کو پسند نہیں کرتا
Tafseer Tafheem-ul-Quran by Syed Abu-al-A'la Maududi
(3:140) If a wound has befallen you a similar wound has already befallen the people who are opposed to you. *100 We make such movements to men in turn so that Allah might mark out those who are the true men of faith and select from among you those who do really bear witness (to the Truth): *101 for Allah does not love the wrong-doers,
If a wound should touch you - there has already touched the meaning
*100). This alludes to the Battle of Badr. The intention is to point out to the Muslims that if the unbelievers were not demoralized by the setback they suffered at Badr then the Muslims should not be disheartened by the setback thev suffered in the Battle of Uhud.
*101). The actual words of this verse, can be interpreted in two ways. One meaning could be that God wanted to select some of them so that He could bestow upon them the honour of martyrdom. The second meaning could be that out of the hotch-potch of true believers and hypocrites which their community consisted of at that moment, God wanted to sift those who were truly His witnesses over all mankind. (See Qur'an 2: 143 - Ed.)
phonetic Transliteration
In yamsaskum qarhun faqad massa alqawma qarhun mithluhu watilka alayyamu nudawiluha bayna alnnasi waliyaAAlama Allahu allatheena amanoo wayattakhitha minkum shuhadaa waAllahu la yuhibbu alththalimeena
English - Sahih International
If a wound should touch you - there has already touched the [opposing] people a wound similar to it. And these days [of varying conditions] We alternate among the people so that Allah may make evident those who believe and [may] take to Himself from among you martyrs - and Allah does not like the wrongdoers -
Quran Bangla tarjuma
তোমরা যদি আহত হয়ে থাক, তবে তারাও তো তেমনি আহত হয়েছে। আর এ দিনগুলোকে আমি মানুষের মধ্যে পালাক্রমে আবর্তন ঘটিয়ে থাকি। এভাবে আল্লাহ জানতে চান কারা ঈমানদার আর তিনি তোমাদের কিছু লোককে শহীদ হিসাবে গ্রহণ করতে চান। আর আল্লাহ অত্যাচারীদেরকে ভালবাসেন না।
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