Surah Fussilat Ayat 37 Tafseer in Hindi
﴿وَمِنْ آيَاتِهِ اللَّيْلُ وَالنَّهَارُ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ ۚ لَا تَسْجُدُوا لِلشَّمْسِ وَلَا لِلْقَمَرِ وَاسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ﴾
[ فصلت: 37]
और उसकी (कुदरत की) निशानियों में से रात और दिन और सूरज और चाँद हैं तो तुम लोग न सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और अगर तुम ख़ुदा ही की इबादत करनी मंज़ूर रहे तो बस उसी को सजदा करो जिसने इन चीज़ों को पैदा किया है
Surah Fussilat Hindi11. अर्थात सच्चा पूज्य अल्लाह के सिवा कोई नहीं है। ये सूर्य, चंद्रमा और अन्य आकाशीय ग्रहें अल्लाह के बनाए हुए हैं। और उसी के अधीन हैं। इसलिए इनको सजदा करना व्यर्थ है। और जो ऐसा करता है, वह अल्लाह के साथ उसकी बनाई हुई चीज़ को उसका साझी बनाता है, जो शिर्क और अक्षम्य पापा तथा अन्याय है। सजदा करना इबादत है, जो अल्लाह ही के लिए विशिष्ट है। इसीलिए कहा कि यदि अल्लाह ही की इबादत करते हो, तो सजदा भी उसी को करो। उसके सिवा कोई ऐसा नहीं जिसे सजदा करना उचित हो। क्योंकि सब अल्लाह के बनाए हुए हैं, सूर्य हो या कोई मनुष्य। सजदा आदर के लिए हो या इबादत (वंदना) के लिए। अल्लाह के सिवा किसी को भी सजदा करना अवैध तथा शिर्क है, जिसाका परिणाम सदैव के लिए नरक है। आयत 38 पूरी करके सजदा करें।
Surah Fussilat Verse 37 translate in arabic
ومن آياته الليل والنهار والشمس والقمر لا تسجدوا للشمس ولا للقمر واسجدوا لله الذي خلقهن إن كنتم إياه تعبدون
سورة: فصلت - آية: ( 37 ) - جزء: ( 24 ) - صفحة: ( 480 )Surah Fussilat Ayat 37 meaning in Hindi
रात और दिन और सूर्य और चन्द्रमा उसकी निशानियों में से है। तुम न तो सूर्य को सजदा करो और न चन्द्रमा को, बल्कि अल्लाह को सजदा करो जिसने उन्हें पैदा किया, यदि तुम उसी की बन्दगी करनेवाले हो
Quran Urdu translation
اور رات اور دن اور سورج اور چاند اس کی نشانیوں میں سے ہیں۔ تم لوگ نہ تو سورج کو سجدہ کرو اور نہ چاند کو۔ بلکہ خدا ہی کو سجدہ کرو جس نے ان چیزوں کو پیدا کیا ہے اگر تم کو اس کی عبادت منظور ہے
Tafseer Tafheem-ul-Quran by Syed Abu-al-A'la Maududi
(41:37) And *42 of His Signs are the night and the day, and the sun and the moon. *43 Do not prostrate yourselves before the sun, nor before the moon, but prostrate yourselves before Allah Who created them, if it is Him that you serve. *44
And of His signs are the night and day and the sun meaning
*42) Now the discourse turns to the common people and they are made to understand the truth in a few sentences.
*43) That is, "They are not the objects of Divine power that you may start worshipping them, thinking that Allah is manifesting Himself in their form, but they are the Signs of Allah by pondering over which you can understand the reality of the universe and its system, and can know that the doctrine of the Oneness of God which the Prophets arc teaching is the actual Reality. The mention of the night and day before the sun and moon has been made to give the warning that the hiding of the sun and appearing of the moon at night, and the hiding of the moon and appearing of the sun in the day clearly point to the fact that neither of them is God or object of Divine power, but both are helpless and powerless objects, and are moving subject to the law of God.
*44) This is an answer to the philosophy that the intelligent among the polytheists generally used to propound to prove that polytheism was rational. They said that they did not bow to these objects but bowed to God through them. An answer to this has been given, so as to say: "If you really are Allah's worshippers, there is no need of these intermediaries: why don't you bow down to Him directly?'
phonetic Transliteration
Wamin ayatihi allaylu waalnnaharu waalshshamsu waalqamaru la tasjudoo lilshshamsi wala lilqamari waosjudoo lillahi alathee khalaqahunna in kuntum iyyahu taAAbudoona
English - Sahih International
And of His signs are the night and day and the sun and moon. Do not prostrate to the sun or to the moon, but prostate to Allah, who created them, if it should be Him that you worship.
Quran Bangla tarjuma
তাঁর নিদর্শনসমূহের মধ্যে রয়েছে দিবস, রজনী, সূর্য ও চন্দ্র। তোমরা সূর্যকে সেজদা করো না, চন্দ্রকেও না; আল্লাহকে সেজদা কর, যিনি এগুলো সৃষ্টি করেছেন, যদি তোমরা নিষ্ঠার সাথে শুধুমাত্র তাঁরই এবাদত কর।
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