Surah Al Alaq Ayat 5 Tafseer in Hindi
﴿عَلَّمَ الْإِنسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ﴾
[ العلق: 5]
उसीने इन्सान को वह बातें बतायीं जिनको वह कुछ जानता ही न था
Surah Al-Alaq Hindi1. (1-5) इन आयतों में प्रथम वह़्य (प्रकाशना) का वर्णन है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मक्का से कुछ दूर जबल नूर (ज्योति पर्वत) की एक गुफा में जिसका नाम ह़िरा है जाकर एकांत में अल्लाह को याद किया करते थे। और वहीं कई दिन तक रह जाते थे। एक दिन आप इसी गुफा में थे कि अकस्मात आपपर प्रथम वह़्य (प्रकाशना) लेकर फ़रिश्ता उतरा। और आपसे कहा : पढ़ो । आपने कहा : मैं पढ़ना नहीं जानता। इसपर फ़रिश्ते ने आपको अपने सीने से लगाकर दबाया। इसी प्रकार तीन बार किया और आपको पाँच आयतें सुनाईं। यह प्रथम प्रकाशना थी। अब आप मुह़म्मद पुत्र अब्दुल्लाह से मुह़म्मद रसूलुल्लाह होकर डरते-काँपते घर आए। इस समय आपकी आयु 40 वर्ष थी। घर आकर कहा कि मुझे चादर उढ़ा दो। जब कुछ शांत हुए तो अपनी पत्नी ख़दीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) को पूरी बात सुनाई। उन्होंने आपको सांत्वना दी और अपने चाचा के पुत्र वरक़ा बिन नौफ़ल के पास ले गईं जो ईसाई विद्वान थे। उन्होंने आपकी बात सुनकर कहा : यह वही फ़रिश्ता है जो मूसा (अलैहिस्सलाम) पर उतारा गया था। काश मैं तुम्हारी नुबुव्वत (दूतत्व) के समय शक्तिशाली युवक होता और उस समय तक जीवित रहता जब तुम्हारी जाति तुम्हें मक्का से निकाल देगी! आपने कहा : क्या लोग मुझे निकाल देंगे? वरक़ा ने कहा : कभी ऐसा नहीं हुआ कि जो आप लाए हैं, उससे शत्रुता न की गई हो। यदि मैंने आपका वह समय पाया, तो आपकी भरपूर सहायता करूँगा। परंतु कुछ ही समय गुज़रा था कि वरक़ा का देहाँत हो गया। और वह समय आया जब आपको 13 वर्ष बाद मक्का से निकाल दिया गया। और आप मदीना की ओर हिजरत (प्रस्थान) कर गए। (देखिए : इब्ने कसीर) आयत संख्या 1 से 5 तक निर्देश दिया गया है कि अपने पालनहार के नाम से उसके आदेश क़ुरआन का अध्ययन करो जिसने इनसान को रक्त के लोथड़े से बनाया। तो जिसने अपनी शक्ति और दक्षता से जीता जागता इनसान बना दिया, वह उसे पुनः जीवित कर देने की भी शक्ति रखता है। फिर ज्ञान अर्थात क़ुरआन प्रदान किए जाने की शुभ सूचना दी गई है।
Surah Al Alaq Verse 5 translate in arabic
Surah Al Alaq Ayat 5 meaning in Hindi
मनुष्य को वह ज्ञान प्रदान किया जिस वह न जानता था
Quran Urdu translation
اور انسان کو وہ باتیں سکھائیں جس کا اس کو علم نہ تھا
Tafseer Tafheem-ul-Quran by Syed Abu-al-A'la Maududi
(96:5) taught man what he did not know. *6
Taught man that which he knew not. meaning
*6) That is, Man originally was absolutely illiterate. Whatever of knowledge he obtained, he obtained it as a gift from Allah. Whatever doors of knowledge at any stage did Allah will to open for man, they went on opining up before him. This same thing has been expressed in the verse of the Throne, thus: "And the people cannot comprehend anything of His knowledge save what He Himself may please to reveal." (Al-Baqarah: 255). Whatever man looks upon as his own scientific discovery was, in fact, unknown to him before. Allah gave him its knowledge whenever He willed without his realizing that Allah by His grace had blessed him with the knowledge of it.
These verses were the very first to be revealed to the Holy Prophet (upon whom be peace), as is stated in the Hadith reported by Hadrat `A'ishah. This first experience was so intense and tremendous that the Holy Prophet could not bear it any more. Therefore, at that time he was only made aware that the Being Whom he already knew and acknowledged as his Lord and Sustainer was in direct communion with him, had started sending down Revelations to him, and had appointed him as His Prophet. Then after an intermission the opening verses of Surah al-Muddaththir were revealed in which he was told what mission he had to perform after his appointment to Prophethood. (For explanation, see Introduction to Al-Muddaththir)
Ayats from Quran in Hindi
- वही तो वह ख़ुदा है जो माँ के पेट में तुम्हारी सूरत जैसी चाहता है
- वह एक सामान (सफर के) पीछे पड़ा
- तो जो चाहे इसे याद रखे
- उनमें साफ सफेद बुर्राक़ शराब के जाम का दौर चल रहा होगा
- क्या उनके ऐसे पॉव भी हैं जिनसे चल सकें या उनके ऐसे हाथ भी हैं
- (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस (अज़ाबे खुदा से) डराने वाला हूँ
- (ऐ रसूल) बेशक तुम जिसे चाहो मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचा सकते मगर हाँ जिसे
- जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अपने ईमान को ज़ुल्म (शिर्क) से आलूदा नहीं
- तो जो बात उनसे कही गई थी उसे शरीरों ने बदलकर दूसरी बात कहनी शुरू
- और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबह सवेरे और झटपट वक्त शाम को
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